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कविता

एक क्लिक में

मोहन सगोरिया


एक क्लिक में खुलता है संसार
सर्च तो कीजिए जनाब! जागिए भला
ई-मेल, मेप, न्यूज, आरकुट, ट्रांसलेट और
...मोर-मोर

इतिहास से लेकर राजनीति तक
और दर्शन से संस्कृति
धर्म से विज्ञान
बस एक क्लिक में जान लेंगे सब कुछ
यह भी जान लेंगे कि एक क्लिक में
सब कुछ जान लेने जैसा नहीं

यह कितना अचरज भरा और खतरनाक है कि
नहीं रही हमारी निजता अब हमारी
खुल रही वह दिन-ब-दिन हर एक क्लिक पर
जैसे ब्रह्मांड खुल रहा परत-दर-परत
बस एक क्लिक में नहीं खुलता तो प्रेम
मन की गाँठें नहीं खुलतीं एक क्लिक में
अलबत्ता चैटिंग हो सकती है
पर एक शंकालु और जासूसी भाव
दीमक-सा पनपता जाता है भीतर

मैं पूछता हूँ जनाब
क्या नींद आ सकती है एक क्लिक में?
खुलने को तो मस्तिष्क सारा
न खुलने को नाजुक पलकें
और वह भी नहीं खुलता जो
उँगलियों के इशारे पर खुलता है - क्लिक... क्लिक।


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